नई दिल्ली : केंद्र की मोदी सरकार को अगले कुछ महीनों में चार प्रमुख नियुक्तियों पर फैसला करना होगा। इन नियुक्तियों की शुरुआत जी एस मुर्मू की जगह लेने से होगी। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के रूप में मुर्मू का कार्यकाल नवंबर में समाप्त होने
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नई दिल्ली : केंद्र की मोदी सरकार को अगले कुछ महीनों में चार प्रमुख नियुक्तियों पर फैसला करना होगा। इन नियुक्तियों की शुरुआत जी एस मुर्मू की जगह लेने से होगी। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के रूप में मुर्मू का कार्यकाल नवंबर में समाप्त होने वाला है। केंद्र के खर्च और खातों पर नजर रखने के लिए मोदी सरकार के किसी भरोसेमंद नौकरशाह को यह प्रतिष्ठित कार्यभार मिलने की संभावना है।
कौन होगा नई सीएजी
रिपोर्ट के अनुसार, मुर्मू को नया कार्यकाल नहीं दिया जा सकता। वहीं, अन्य तीन मौजूदा पदों भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, मुख्य आर्थिक सलाहकार और सेबी के अध्यक्ष- को फिर से नियुक्त किया जा सकता है। सीएजी के बाद, सरकार को यह तय करना है कि वह दिसंबर में शक्तिकांत दास को एक और कार्यकाल देना चाहती है या मुंबई के मिंट रोड पर महत्वपूर्ण नौकरी के लिए किसी अन्य की तलाश करना चाहती है।
पूर्व नौकरशाह दास को दिसंबर 2018 में उर्जित पटेल के अचानक इस्तीफे के बाद तीन साल का कार्यकाल दिया गया था। पटेली की सरकार के साथ तीखी नोकझोंक हुई थी। दास को तीन साल पहले दूसरा कार्यकाल दिया गया था। व्यापक रूप से देखा जाता है कि उन्होंने वित्तीय क्षेत्र को अच्छी तरह से मैनेज किया है। साथ ही केंद्र के साथ उनके संबंध अच्छे रहे हैं, कुछ ऐसा जो उनके दो पूर्ववर्ती मैनेज नहीं कर सके।
आरबीआई गवर्नर की नियुक्ति के एक महीने बाद, सरकार के सामने यही सवाल होगा कि क्या मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन को जारी रखा जाए। यह देखते हुए कि अगले कुछ सप्ताह में बजट की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी, सरकार पहले ही तय कर सकती है कि उसके शीर्ष अर्थशास्त्री को नया कार्यकाल मिलने की संभावना है या नहीं। सीईए बजट के लिए महत्वपूर्ण तकनीकी इनपुट प्रदान करता है। साथ ही वित्त मंत्रालय के आर्थिक प्रभाग में अपने सहयोगियों के साथ आर्थिक सर्वेक्षण भी लिखता है।
चौथी प्रमुख नियुक्ति सेबी चीफ को लेकर है। यह मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी दुविधा पैदा करने वाली है। इसकी वजह है किमाधबी पुरी बुच को लेकर विवाद है।माधबी पुरी बुच पर अनियमितता और हितों के टकराव के आरोप लगे हैं। हालांकि, उन्होंने इन आरोपों से इनकार किया है, जबकि सरकार में इस बात पर चर्चा चल रही है कि सेबी जैसे रेगुलेटर का कार्यभार संभालने के लिए सिविल सेवक सबसे उपयुक्त कैसे हैं।
राज्य ब्यूरो, रांची। भाजपा ने झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ और डेमोग्राफी में बदलाव को बड़ा मुद्दा बनाया है। इसे लेकर माहौल भी बना है, लेकिन पार्टी के बागी नेता इस अभियान को पलीता लगा रहे हैं। संताल परगना से कोल्हान तक यही हाल है।